भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, अक्सर हम आए दिन कहीं न कहीं हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना और सौहार्द की मिसालें खबरों में पढ़ते आए हैं. आज इस पोस्ट के ज़रिये हम एक ऐसी बेमिसाल तस्वीर आपको दिखाने जा रहे हैं, जिसमें एक हिंदू परिवार पिछले 50 सालों से एक मस्जिद की देखरेख कर रहा है, इस परिवार का मानना है कि हिन्दू हो या मुसलमान या कोई और हम सब एक दूसरे से अलग नहीं हैं.तो हमने सोचा क्यों न आज आप सब को भी इन से रूबरू कराया जाए.
न्यूज़ एजेंसी एन आई के मुताबिक इस मस्जिद की देखरेख करने वाले बोस परिवार के एक सदस्य ने कुछ जानकारियां साझा की हैं. इस परिवार के इन सदस्य का नाम पार्थ सारथी बोस है. इन्होंने बताया है कि सांप्रदायिक भेदभाव पैदा करने वाले लोग इस देश में कभी भी मुसलमानों और हिंदुओं को विभाजित करने में कामयाब नहीं हों पाएंगे.
मस्जिद की देखभाल करने वाला ये हिन्दू परिवार पश्चिम बंगाल से है
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, यह परिवार पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले का निवासी है. और यह परिवार नबापल्ली इलाके में स्थित एक मस्जिद की पिछले 50 साल से देखरेख में लगा है. खबर के मुताबिक बताते हैं कि यह परिवार 1964 में, यानी कि उस समय के पूर्वी पाकिस्तान से आया था जो कि वर्तमान में बांग्लादेश है.
A Hindu family in West Bengal’s North 24 Parganas has been taking care of a mosque for over 50 years
“In 1964,we came here from Bangladesh. We got this property in exchange for our land in Bangladesh.Our family decided not to remove the mosque,” said the caretaker of the mosque pic.twitter.com/iCrUjUZzul
— ANI (@ANI) February 19, 2022
इस सब की शुरुआत तब से हुई जब उनकी मां ने सबसे पहले यहां एक दीपक जलाया था. उनकी मां ने कहा था कि यह पूजनीय और पवित्र स्थान है, और उस हिसाब से इस जगह का सम्मान किया जाना चाहिए.
500 साल पुरानी जर्जर मस्जिद की मरम्मत इसी हिन्दू परिवार ने करवाई
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, यह परिवार जिस मस्जिद की देखरेख करता आ रहा है, वह 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है. कुछ समय पहले इस मस्जिद की हालत ठीक नहीं थी.
फिर इसके बाद बोस परिवार ने इस मस्जिद की मरम्मत कराई और तभी से ही उनके दादा और पिता ने आगे के लिए भी इस मस्जिद की देखरेख करने का जिम्मा भी अपने हाथ में ले लिया.
बोस परिवार के इस नेक काम में उनका बेटा पार्थ भी मस्जिद की देखरेख का काम करने में आगे रहता है और वह बताते हैं की यहाँ मस्जिद की देखरेख करना मेरे लिए काफी उत्साह का अनुभव रहा है.