सोशल मीडिया पर इन दिनों एक नाम चर्चा में है जिसने पूरे सोशल मीडिया के लिए ही मुश्किलें खड़ी कर दी है. हम बात करे रहे है लीना खान की. लीना खान एक पाकिस्तानी है, लीना का जन्म 3 मार्च 1989 को लंदन में हुआ था. लीना के माता-पिता पाकिस्तानी है. लीना 11 वर्ष की थी जब वह अपने माता-पिता के साथ इंग्लैंड से अमेरिका शिफ्ट हो गए थे.
मेटा कंपनी के बारे में तो आप जानते ही होंगे. मेटा फेसबुक की एक पैरेंटल कंपनी है. मेटा इन दिनों कई विवा’दों में घिरी हुई है. कंपनी पर कई गंभीर आरोप भी लगाए जा रहे है.
मुश्किलों में फेसबुक की पैरेंटल कंपनी मेटा
मेटा कंपनी पर यह आरोप अमेरिकन फेडरेशन कमीशन पर लगाए गए है. अमेरिकन फेडरेशन कंपनी ने मेटा का आरोप लगाया है कि वो किसी भी छोटी कंपनी को आगे बढ़ने में कोई भी मदद नहीं करते है, इसके उल्ट वह उनके रास्ते की रुकावट बनती है.

ऐसे में यह अमेरिकन फेडरेशन चाहता है कि फेसबुक मेटा व्हाट्सएप एवं इंस्टाग्राम को उन्हें बेच दें. अमेरिका की यह फेडरेशन ट्रेड कमीशन एक स्वतंत्र बोर्ड है जिसका नेतृत्व लीना खान के द्वारा किया जाता है.
लीना अमेरिकन फाउंडेशन में 2011 से जुडी हुई है, उन्होंने 2014 तक बतौर पॉलिसी एनालिस्ट के तौर पर काम किया. बाद में वो अमेरिकन फेडरेशन ट्रेड कमीशन में काउंसिलर बन गई.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मार्च 2021 में उन्हें कमीशन में अपॉइंट किया. वह Columbia Law School में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर भी तैनात है.
वह कमीशन की सबसे कम उम्र में चेयरपर्सन बनने वाली महिला के तौर पर जाना जाता है. लीना काफी वक्त से टेक कंपनियों की सबसे बड़ी आलोचक के तौर पर जानी जाती रही है.
फेडरल ट्रेड कमीशन मेटा से Instagram और WhatsApp को अलग करना चाहता है. जिसके लिए मेटा तैयार नहीं है. इस मामले में फेडरल ट्रेड कमीशन को फेडरल जज से हरी झंडी मिल चुकी है, इसके बाद अब एंट्री ट्रस्ट मामले में दिग्गज टेक कंपनी Meta को कोर्ट में घसीटा जा रहा है.
हालांकि एजेंसी इससे पहले पिछले साल भी मेटा जो पहले फेसबुक था के खिलाफ को कोर्ट जा चुकी है. लेकिन उस वक्त जानकारी के आभाव के चलते कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

गूगल, अमेज़न भी निशाने पर
लेकिन इस बार FTC अपनी शिकायत में बदलाव करके कोर्ट पहुंचा है. FTC ने सोशल नेटवर्क क्षेत्र में Meta की मोनोपोली के आरोप लगाए है. FTC की चेयरपर्सन लीना खान की नजर सिर्फ मेटा पर ही नहीं है बल्कि अमेज़न और गूगल जैसी दिग्गज कंपनियां भी निशाने पर है.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि फेसबुक ने साल 2012 में FTC से हरी झंडी मिलने के बाद ही 1 अरब डॉलर में इंस्टाग्राम का अधिग्रहण किया था, उस वक्त इस कंपनी में 13 कर्मचारी थे.
वहीं इसके दो साल बाद यानि साल 2014 में फेसबुक ने 19 अरब डॉलर में इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप WhatsApp को खरीदा. इस मामले को लेकर अब FTC की दलील है कि फेसबुक ने क्रम से अपने कंपटीटर्स को खरीदा कर मोनोपोली बना दी है.
कमीशन का आरोप है कि कंपनी अपना एकक्षत्र राज स्थापित कर रहा है जिससे कंज्यूमर्स को कम विकल्प मिल पा रहे है. ऐसे में मार्केट में नई टेक और बिजनेस इनोवेशन कंपनियां भी नहीं पनप पा रही है. जिसके चलते प्राइवेसी प्रोटेक्शन में भी कमी आ रही है.